Vayu Purana (वायु पुराण) हिंदू धर्म के अठारह प्रमुख पुराणों में से एक है। ऐसा माना जाता है कि इसकी रचना दूसरी या तीसरी शताब्दी में की गई थी और यह हवा के देवता भगवान वायु को समर्पित है।
वायू पुराण क्या है ?
what is vayu purana ?
पुराण में ब्रह्मांड विज्ञान, पौराणिक कथाओं, भूगोल, तीर्थ स्थलों और सामाजिक मानदंडों जैसे विभिन्न विषयों के बारे में विस्तृत जानकारी है। यह ब्रह्मांड के निर्माण और मानव जीवन के विभिन्न चरणों का वर्णन करता है। पाठ विभिन्न प्रकार के योग और उनके लाभों के बारे में भी जानकारी प्रदान करता है। वायु पुराण (Vayu Purana) विभिन्न हिंदू देवताओं, उनकी पौराणिक कथाओं और उनकी पूजा के विस्तृत विवरण के लिए महत्वपूर्ण है। यह व्यक्ति के जीवन में कर्म और धर्म के महत्व पर भी जोर देता है। पुराण का विभिन्न भारतीय भाषाओं में अनुवाद किया गया है और विद्वानों और भक्तों के लिए समान रूप से ज्ञान का एक महत्वपूर्ण स्रोत रहा है। वायु पुराण (Vayu Purana) हिंदू मान्यताओं और प्रथाओं को समझने के लिए एक मूल्यवान संसाधन बना हुआ है।
।। वायु पुराण ।।
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वायु पुराण का क्या महत्व है ?
What is the importance of Vayu Purana?
इस पुराण में शिव उपासना चर्चा अधिक होने के कारण इस को शिवपुराण का दूसरा अंग माना जाता है, इसमें खगोल, भूगोल, सृष्टिक्रम, युग, तीर्थ, पितर, श्राद्ध, राजवंश, ऋषिवंश, वेद शाखाएं, संगीत शास्त्र, शिवभक्ति, आदि का सविस्तार निरूपण है।
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अनुक्रम :-
- विस्तार
- वायु पुराण की संक्षिप्त जानकारी
- सन्दर्भ
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विस्तार :-
What is the expansion of Vayu Purana :-
इस पुराण में इसमें ११२ अध्याय एवं ११,००० श्लोक हैं। विद्वान लोग ‘वायु पुराण’ को स्वतन्त्र पुराण न मानकर ‘शिव पुराण’ और ‘ब्रह्माण्ड पुराण’ का ही अंग मानते हैं। परन्तु ‘नारद पुराण’ में जिन अठारह पुराणों की सूची दी गई हैं, उनमें ‘वायु पुराण’ को स्वतन्त्र पुराण माना गया है।
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वायु पुराण की संक्षिप्त जानकारी :-
Brief description of Vayu Purana :-
इस पुराण में वायुदेव ने श्वेतकल्प के प्रसंगों में धर्मों का उपदेश किया है। इसलिये इसे वायु पुरण कहते है। जिसमें सर्ग आदि का लक्षण विस्तारपूर्वक बताया गया है, जहां भिन्न भिन्न मन्वन्तरों में राजाओं के वंश का वर्णन है और जहां गयासुर के वध की कथा विस्तार के साथ कही गयी है, जिसमें सब मासों का माहात्मय बताकर माघ मास का अधिक फ़ल कहा गया है जहां दान दर्म तथा राजधर्म अधिक विस्तार से कहे गये हैं, जिसमें पृथ्वी पाताल दिशा और आकाश में विचरने वाले जीवों के और व्रत आदि के सम्बन्ध में निर्णय किया गया है, वह वायुपुराण का पूर्वभाग कहा गया है। मुनीश्वर ! उसके उत्तरभाग में नर्मदा के तीर्थों का वर्णन है, और विस्तार के साथ शिवसंहिता कही गयी है जो भगवान सम्पूर्ण देवताओं के लिये दुर्जेय और सनातन है,वही यह नर्मदा का जल ब्रह्मा है, यही विष्णु है, और यही सर्वोत्कृष्ट साक्षात शिव है। यह नर्मदा जल ही निराकार ब्रह्म तथा कैवल्य मोक्ष है, निश्चय ही भगवान शिवने समस्त लोकों का हित करने के लिये अपने शरीर से अपने जाटा से इस नर्मदा नदी के रूप में किसी दिव्य शक्ति को ही धरती प्रर उतारा है। जो नर्मदा के उत्तर तट पर निवास करते है, वे भगवान रुद्र के अनुचर होते है, और जिनका दक्षिण तट पर निवास है, वे भगवान विष्णु के लोकों में जाते है, ऊँकारेश्वर से लेकर पश्चिम समुद्र तट तक नर्मदा नदी में दूसरी नदियों के ३५ पापनाशक संगम है, उनमे से ११ तो उत्तर तटपर है, और तेईस दक्षिण तट पर। पैंतीसवां तो स्वयं नर्मदा और समुद्र का संगम कहा गया है, नर्मदा के दोनों किनारों पर इन संगमों के साथ चार सौ प्रसिद्ध तीर्थ है। मुनीश्वर ! इनके सिवाय अन्य साधारण तीर्थ तो नर्मदा के पग पग पर विद्यमान है, जिनकी संख्या साठ करोड साठ हजार है। यह परमात्मा शिव की संहिता परम पुण्यमयी है, जिसमें वायुदेवता ने नर्मदा के चरित्र का वर्णन किया है, जो इस पुराण को सुनता है या पढता है, वह शिवलोक का भागी होता है।
Vayu Puran Video :-
Credit – Bhakti Sangit
- वायु पुराण में क्या लिखा है ? – इसमें खगोल, भूगोल,तीर्थ, पितर, श्राद्ध, राजवंश, ऋषिवंश, वेद शाखाएं, सृष्टिक्रम, युग, संगीत शास्त्र, शिवभक्ति, आदि का सविस्तार निरूपण है।
- वायु पुराण की रचना कब हुई ? – इसकी तिथि 350 ई. एवं 550 ई. के बीच में कहीं होगी। शंकराचार्य ने अपने वेदान्तसूत्र में एक श्लोक जिस पुराण से उद्धृत किया है वह वायु पुराण ही है, केवल ‘नारायण’ शब्द के बदले वायु में ‘महेश्वर’ रखा गया है।
- वायु पुराण कौन से वंश से संबंधित है ? – विष्णु पुराण का संबंध मौर्य वंश से जबकि वायु पुराण का संबंध गुप्त वंश से तथा मत्स्य पुराण का संबंध आंध्र सातवाहन वंश से है।
- वायु के भगवान कौन है ? – वायु देव हवा के देवता को कहा जाता है, वेदो में इनका कई बार वर्णन आता है।