हिंदू धर्म के अठारह प्रमुख पुराणों में से नारद पुराण (Narad Puran) एक है। इसका नाम ऋषि नारद के नाम पर रखा गया है और माना जाता है कि इसकी रचना 8वीं से 11वीं शताब्दी ईस्वी में हुई थी।
।। नारद पुराण ।।
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नारद पुराण हिंदी में / Narad Puran In Hindi :-
पुराण हिंदू धार्मिक ग्रंथों की एक शैली है जो ब्रह्मांड विज्ञान, पौराणिक कथाओं, नैतिकता और दर्शन जैसे विभिन्न विषयों पर विस्तृत जानकारी प्रदान करते हैं। नारद पुराण के दो भाग हैं – पूर्वभाग और उत्तरभाग।
पूर्वभाग में चार खंड हैं जो सृष्टि, ब्रह्मांड, चार युग (युग), और विभिन्न देवताओं और संतों के जीवन जैसे विषयों को कवर करते हैं। उत्तरभाग में दो खंड हैं जो भगवान विष्णु और उनके अवतारों की महिमा पर ध्यान केंद्रित करते हैं।नारद पुराण (Narad Puran) में तीर्थ स्थलों, अनुष्ठानों और भगवान की भक्ति के महत्व पर चर्चा भी शामिल है। इसे हिंदू पौराणिक कथाओं और दर्शन पर जानकारी का एक मूल्यवान स्रोत माना जाता है।
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नारद पुराण में क्या है ? What does Narad Puran consist of? :-
नारद पुराण के दो प्रमुख भाग हैं: पूर्वभाग और उत्तरभाग।
पूर्वभाग को आगे चार खंडों में विभाजित किया गया है, जिसमें सृष्टि, ब्रह्मांड, चार युग (युग), और विभिन्न देवताओं और ऋषियों के जीवन जैसे विभिन्न विषयों को शामिल किया गया है। पहला खंड, जिसे ब्रह्म खंड कहा जाता है, सृष्टि, ब्रह्मांड की उत्पत्ति और विभिन्न राजवंशों की वंशावली से संबंधित है। दूसरा खंड, जिसे प्रकृति खंड कहा जाता है, सृष्टि के सिद्धांतों, तीन गुणों (प्रकृति के गुण) और ब्रह्मांड को बनाने वाले विभिन्न तत्वों की व्याख्या करता है। तीसरा खंड, जिसे मुनि खंड कहा जाता है, विभिन्न संतों के जीवन और उनकी शिक्षाओं का वर्णन करता है। चौथा खंड, जिसे भक्ति खंड कहा जाता है, भगवान की भक्ति के महत्व, विष्णु की महिमा और मोक्ष प्राप्त करने के लिए किए जाने वाले अनुष्ठानों और अनुष्ठानों से संबंधित है।
उत्तरभाग में दो खंड हैं। प्रथम खंड, जिसे मध्यम खंड कहा जाता है, में भारतवर्ष (भारत) के भूगोल और तीर्थ स्थलों के महत्व के बारे में जानकारी शामिल है। दूसरा खंड, जिसे उत्तरा खंड कहा जाता है, भगवान विष्णु और उनके अवतारों की महिमा, विशेष रूप से राम और कृष्ण की कहानियों पर केंद्रित है।कुल मिलाकर, नारद पुराण (Narad Puran) हिंदू पौराणिक कथाओं, दर्शन और धार्मिक प्रथाओं पर जानकारी का एक मूल्यवान स्रोत है।
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नारद का उद्देश्य क्या है ? What is the purpose of Narad? :-
नारद हिंदू पौराणिक कथाओं में एक प्रमुख ऋषि हैं और अपने ज्ञान, ज्ञान और भगवान के प्रति समर्पण के लिए जाने जाते हैं। उन्हें देवताओं और नश्वर लोगों के बीच एक दूत माना जाता है, और उनका उद्देश्य ज्ञान, ज्ञान और भगवान की भक्ति का संदेश फैलाना है।
नारद पुराण (Narad Puran) में, नारद को अक्सर एक शिक्षक के रूप में चित्रित किया जाता है जो अपने शिष्यों को ज्ञान और ज्ञान प्रदान करता है। वह भगवान की भक्ति के महत्व और धार्मिक अनुष्ठानों और अनुष्ठानों के प्रदर्शन को बढ़ावा देने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।नारद को भगवान के प्रति उनके समर्पण और भक्ति और धार्मिकता के संदेश को फैलाने के उनके अथक प्रयासों के लिए एक आदर्श के रूप में सम्मानित किया जाता है। उनकी शिक्षाओं का हिंदू दर्शन और धार्मिक प्रथाओं के विकास पर गहरा प्रभाव पड़ा है।
अनुक्रम :-
- संरचना
- पूर्व भाग
- उत्तर भाग
- सामग्री
- नारदपुराण में गणित
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संरचना :-
नारद पुराण (Narad Puran) दो भागों में विभक्त है- पूर्व भाग और उत्तर भाग। पहले भाग में चार अध्याय हैं जिसमें सुत और शौनक का संवाद है, ब्रह्मांड की उत्पत्ति, विलय, शुकदेव का जन्म, मंत्रोच्चार की शिक्षा, पूजा के कर्मकांड, विभिन्न मासों में पड़ने वाले विभिन्न व्रतों के अनुष्ठानों की विधि और फल दिए गए हैं । दूसरे भाग में भगवान विष्णु के अनेक अवतारों की कथाएँ हैं।
2. पूर्व भाग :-
इस भाग में ज्ञान के विविध सोपानों का सांगोपांग वर्णन प्राप्त होता है। पूर्व भाग में १२५ अध्याय हैं। ऐतिहासिक गाथाएं, गोपनीय धार्मिक अनुष्ठान, धर्म का स्वरूप, भक्ति का महत्त्व दर्शाने वाली विचित्र और विलक्षण कथाएं, मन्त्र विज्ञान, व्याकरण, निरूक्त, ज्योतिष, बारह महीनों की व्रत-तिथियों के साथ जुड़ी कथाएं, एकादशी व्रत माहात्म्य, सनन्दन, सनातन, गंगा माहात्म्य तथा ब्रह्मा के मानस पुत्रों-सनक, सनत्कुमार आदि का नारद से संवाद का विस्तृत, अलौकिक और महत्त्वपूर्ण आख्यान इसमें प्राप्त होता है। अठारह पुराणों की सूची और उनके मन्त्रों की संख्या का उल्लेख भी इस भाग में संकलित है।
3. उत्तर भाग :-
इस भाग में महर्षि वसिष्ठ और ऋषि मान्धाता की व्याख्या प्राप्त होती है। यहां वेदों के ६ अंगों का विश्लेषण है। ये अंग हैं-कल्प, व्याकरण, शिक्षा, निरूक्त, छंद और ज्योतिष। उत्तर भाग में ८२ अध्याय सम्मिलित हैं।
4. शिक्षा :-
शिक्षा के अंतर्गत मुख्य रूप से स्वर, वर्ण आदि के उच्चारण की विधि का विवेचन है। मन्त्रों की तान, राग, स्वर, ग्राम और मूर्च्छता आदि के लक्षण, मन्त्रों के ऋषि, छंद एवं देवताओं का परिचय तथा गणेश पूजा का विधान इसमें बताया जाता है।
5.कल्प :-
कल्प में हवन एवं यज्ञादि अनुष्ठानों के सम्बंध में जानकारी है। इसके अतिरिक्त १४ मन्वन्तर का एक काल या ४ लाख ३२ हजार वर्ष होते हैं। यह ब्रह्मा का एक दिन कहलाता है।
6.व्याकरण :-
व्याकरण में शब्दों के रूप तथा उनकी सिद्धि आदि का पूरा विवेचन किया गया है।
7.निरुक्त :-
शब्दों के रूढ़ यौगिक और योगारूढ़ स्वरूप को इसमें समझाया गया है। इसमें शब्दों के निर्वाचन पर विचार किया जाता है।
8.ज्योतिष :-
ज्योतिष के अन्तर्गत गणित अर्थात् सिद्धान्त भाग, जातक अर्थात् होरा स्कंध अथवा ग्रह-नक्षत्रों का फल, ग्रहों की गति, सूर्य संक्रमण आदि विषयों का ज्ञान आता है।
9.छंद :-
इन छन्दों को वेदों का चरण कहा गया है,छंद के अन्तर्गत वैदिक और लौकिक छंदों के लक्षणों आदि का वर्णन किया जाता है। क्योंकि इनके बिना वेदों की गति नहीं है। छंदों के बिना वेदों की ऋचाओं का सस्वर पाठ नहीं हो सकता। इसीलिए वेदों को ‘छान्दस’ भी कहा जाता है।
10.सामग्री :-
अतिथि का स्वागत देवार्चन समझकर ही करना चाहिए। अतिथि को देवता के समान माना गया है। वर्णों और आश्रमों का महत्त्व प्रतिपादित करते हुए यह पुराण ब्राह्मण को चारों वर्णों में सर्वश्रेष्ठ मानता है। उनसे भेंट होने पर सदैव उनका नमन करना चाहिए। क्षत्रिय का कार्य ब्राह्मणों की रक्षा करना है तथा वैश्य का कार्य ब्राह्मणों का भरण-पोषण और उनकी इच्छाओं की पूर्ति करना है। दण्ड-विधान, विवाह तथा अन्य सभी कर्मकाण्डों में ब्राह्मणों को छूट और शूद्रों को कठोर दण्ड देने की बात कही गई है।
पुराण में विष्णु की पूजा के साथ-साथ राम की पूजा का भी विधान प्राप्त होता है। हनुमान और कृष्णोपासना की विधियां भी बताई गई हैं। इस पुराण में गंगावतरण का प्रसंग और गंगा के किनारे स्थित तीर्थों का महत्त्व विस्तार से वर्णित किया गया है। सूर्यवंशी राजा बाहु का पुत्र सगर था। विमाता द्वारा विष दिए जाने पर ही उसका नाम ‘सगर’ पड़ा था। सगर द्वारा शक और यवन जातियों से युद्ध का वर्णन भी इस पुराण में मिलता है। सगर वंश में ही भगीरथ हुए थे। उनके प्रयास से गंगा स्वर्ग से पृथ्वी पर आई थीं। इसीलिए गंगा को ‘भागीरथी’ भी कहते हैं।काली और शिव की पूजा के मन्त्र भी दिए गए हैं। किन्तु प्रमुख रूप से यह वैष्णव पुराण ही है। इस पुराण के अन्त में गोहत्या और देव निन्दा को जघन्य पाप मानते हुए कहा गया है कि ‘नारद पुराण’ (Narad Puran) का पाठ ऐसे लोगों के सम्मुख कदापि नहीं करना चाहिए।
11. नारदपुराण में गणित
नारद पुराण (Narad Puran) में ६ वेदांगों को इस प्रकार प्रस्तुत किया गया है-
शिक्षा — अध्याय ५०
कल्प — अध्याय ५१
व्याकरण — अध्याय ५२
निरुक्त — अध्याय ५३
ज्योतिष — अध्याय ५४, ५५, ५६
छन्द — अध्याय ५७
12. ज्योतिष के अन्तर्गत सामग्री का प्रस्तुतीकरण बताया गया है-
अध्याय ५४ – गणित
१ से १२कख – परिचय
१२गघ से ६०कख – गणित
६०गघ से १८७ – गणितीय खगोलिकी
अध्याय ५५ – जातक
अध्याय ५६ – संहिता
FAQ :-
- नारद पुराण का महत्व क्या है – नारद पुराण (Narad Puran) हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है क्योंकि इसमें पौराणिक कथाओं, ब्रह्मांड विज्ञान, दर्शन, नैतिकता और आध्यात्मिकता जैसे विषयों की एक विस्तृत श्रृंखला शामिल है। इसमें विभिन्न देवताओं, संतों और संतों के बारे में कहानियाँ और किंवदंतियाँ हैं, साथ ही अनुष्ठानों, त्योहारों और तीर्थ स्थलों का वर्णन है। इसमें कर्म, धर्म, मोक्ष और स्वयं की प्रकृति जैसे विषयों पर चर्चा भी शामिल है।
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नारद पुराण Video :-
Credit – VEDIC PURAN
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- नारद पुराण (Narad Puran) में क्या लिखा है ? –शिक्षा, कल्प, व्याकरण, ज्योतिष (तथा गणित), और छन्द-शास्त्रों का विशद वर्णन तथा भगवान की उपासना का विस्तृत वर्णन है।
- नारद भगवान कौन थे ? – ब्रह्मा के मानस पुत्र थे और भगवान विष्णु का परम भक्त माने जाता है।
- नारद ने विष्णु को श्राप क्यों दिया था ? – अपनी पत्नी के विरह का दु:ख सहेंगे और उन्हें चारों दिशाओं में उनकी खोज करनी पड़ेगी।
- नारद की पत्नी का नाम क्या है ? – नारद की पत्नी का नाम दमयंती है।
।। ॐ नमो भगवते वासुदेवाय – श्रीनारदमहापुराण ।।